Chauhan wansh ki shakhayen

Tuesday, March 26, 2013

१) देवसूरिया चौहान
संभर निवासी सुग्रीवराज के वंशज सुभीषराव सपरिवार राजपूताना से निकलकर विक्रमपुर, प्रतापगढ़ मे आकर निवास किया और कृषि आदि से निर्वाह करने लगे | प्रथम ये देसूरी नामक स्थान मे निवास करते थे | इस कारण ये देवसूरिया चौहान के नाम से प्रसिद्ध हुए |
इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पत्राचिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |

२) नाडोला चौहान-
 नाडोला नगर के रहने वाले विजयसेन चौहान अपने स्त्री एवं पुत्रों सहित चलकर विक्रमपुर नामक नगर में आए और वहाँ पर कुछ दिनों तक निवास करके सुखिराव के साथ सम्मिलित हुए | नाडोल में रहने से यह नाडोला चौहान कहे जाते थे |
इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पत्राचिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |

 ३) गाड़ण चौहान
 ११७वें पृथ्वीराज के बेटे गाड़ण के वंशधर कनकराव जी चौहान संभर से निकलकर सपरिवार मालवा देश में आए | तथा यहाँ से विक्रमपुर पहुँचे | विक्रमपुर में कोई उद्योग ना मिलने के कारण सई नदी के किनारे कृषि करने लगे और यहीं आबाद हुए | चूँकि गाड़ण के वंशधर थे इसलिए गाड़ण चौहान कहलाए |
इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पत्राचिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |

४) ओहर चौहान-
 संभर निवासी माणिक राव जी के बेटे हनुमान राव जी के वंशज सागर हुए | तिनसे वंशधर बनवीर राव जी चौहान यवनो के अत्याचारों से पीड़ित होकर अपना धर्म बचाने के लिए राजपूताने के सर्व सुखों को त्याग स्त्री एवम् पुत्रों आदि कुटुम्बईयों को साथ लेकर मालवा पहुँचे | वहाँ से असहाय भटकते हुए विक्रमपुर में आ बसे | कृषि से अपने परिवार का भारण पोषण करने लगे | जौनपुर प्रांत के ओवारी नामक ग्राम मे इन्होने अपना निवास स्थान बनाया इसलिए ओहर चौहान कहलाए
इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पत्राचिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |

 ५) बंगाह चौहान 
मोहलों के वंश हाल मे इनका वृतांत स्पष्ट किया हुआ है | इस शाखा के राजसिंह नामक चौहान ने परिवार सहित मारवाड को छोड़कर विक्रमपुर ग्राम, प्रत्पगढ़ प्रांत अर्थात अवध देश में अपने प्राण की रक्षा होना निश्चय जान बाग में अपना निवास स्थान कायम किया और कृषि आदि में अपना जीवन यापन करने लगे | बाग में रहने के कारण इनको बंगाह के नाम से पुकारा जाता है |
इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पत्राचिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |

६) मधानी चौहान 
चौहान वंश में महारावलजी के वंशधर माधावसिंह जी से मधानी शाखा प्रसिद्ध हुई | वह प्रथम साबोर में निवास करते थे पुनः इनकी संतान मे भोजराज नाम के चौहान जालौर में आ बसे थे | जिस समय यवानों का प्रचंड अत्याचार मरुदेश पर हुआ उस समय भोजराज के वंशज अखेराज राजपूतने से निकालकर अवध देश में निवास किया | चूँकि माधव सिंह बहुत प्रतापी सामंत हुए इसलिए इस शाखा के लोग मधानी चौहान कहलाते हैं |
 इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पत्राचिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |

७) अठभैया चौहान 
यह चौहान वंश की एक प्रसिद्ध शाखा है | और अपने प्राचीन नाम से ही अब भी प्रसिद्ध है | इस शाखा के नाम में कोई परिवर्तन नही हुआ है |
इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पत्राचिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |

८) धनधेट चौहान 
 ये चौहान वंश की एक शाखा है | इस वंश में हरिसिंह नाम के एक प्रतापी पुरुष हुए और धन्धेर नगर में निवास किया करते थे | तत्पश्चात मलानी नगर में जाकर निवास किया | इन्ही के वंशज धनेश और जैतसिंह यवनों के अत्याचार से मलानीनगर छोड़कर भटकते हुए अवध देश में आकर विक्रमपुर मे निवास निवासकिया | कुच्छ समय व्यतीत होने पर यहाँ से भी कूच कर दिया और जौनापुर प्रांत मे जा बसे | चूँकि इनके वंशजों मे धनेश आती प्रसिद्ध हुए इसलिए यह शाखा धनधेट चौहान के नाम से प्रसिद्ध हुई |
 इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पत्राचिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |
 
९) देवराज पीपरताली चौहान
 जालौर के १६वें राजा समररसी के दूसरे पुत्र मानसिंह हुए | मानसिंह के पुत्र वीज़ड उपनाम देवराज हुए, इन्ही के नाम से यह शाखा प्रसिद्ध हुई | यह शाखा प्राचीन काल से मरुदेश में विख्यात है | देवराज के वंशधर बागराज यवनों के अत्याचार से दुखी होकर अपने स्त्री, पुत्रों सहित जालौन नगर को त्याग करके अवध देश. प्रतापगढ़, विक्रमपुर में आकर निवास करने लगे चूँकि बागराज ने पीपरताल नमक स्थान में निवास किया इसलिए देवराज पीपरताली चौहान के नाम से प्रसिद्ध हुए |
 इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पत्राचिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |

१०) देवराज कुल्हुआ चौहान
जालौर के १६वें राजा समररसी के दूसरे पुत्र मानसिंह हुए | मानसिंह के पुत्र वीज़ड उपनाम देवराज हुए, इन्ही के नाम से यह शाखा प्रसिद्ध हुई | यह शाखा प्राचीन काल से मरुदेश में विख्यात है | देवराज के वंशधर बागराज यवनों के अत्याचार से दुखी होकर अपने स्त्री, पुत्रों सहित जालौन नगर को त्याग करके अवध देश. प्रतापगढ़, विक्रमपुर में आकर निवास करने लगे भोजराज कोल्हुअन  नामक स्थान में निवास किया इसलिए देवराज कुल्हुआ चौहान के नाम से प्रसिद्ध हुए |
इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पक्षी चिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |

११) रजवार चौहान
 रजवार चौहान वंश की एक शाखा है | पृथ्वीराज चौहान दिल्लीपति के काका कान्हरावजी से यह शाखा प्रचलित हुई | इन्ही कान्हरावजी ने मैनपुरी को चौहानों की गद्दी बनाई थी | जिस समय दिल्ली का अधिकार शहाबुद्दीन गोरी के हाथ मे चला गया, उस समय चौहानों ने दिल्ली छोड़कर मेवाड़, मारवाड में जाकर अपना निवास बनाया परंतु औरंगजेब की प्रबल क्रोधग्नि से धनहीन होकर निस्सहाय वहाँ से अवढ़देश की ओर जाना पड़ा | इस समुदाय मे धीरपाल व केशरी दो पुरुष नामी आए थे और स्थाई रूप से यहीं बस गये |
 इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पत्राचिह्न-मयूर, पक्षी चिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |

१२) मैनी चौहान
 चौहान वंश में निर्वांग शाखा प्रसिद्ध है | इसी शाखा में अनूपसिंह एक प्रतापी पुरुष हुए | इनके वंशधर बलवंत संभार नगर में निवास करते थे | यवानों से पीड़ित होकर अपना सर्वस्व छोड़कर धर्म रक्षा के लिए मरूभूमि से निकल पड़े और अवध देश प्रतापगढ़ विक्रमपुर मे निवास करने लगे | कुछ काल वहाँ निवास करने के बाद वहाँ से कूच कर दिया और कारमैनी नामक ग्राम मे आकर बसे | इसी वजह से मैनी चौहान के नाम से प्रसिद्ध हुए |
इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पक्षी चिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वत्स है |

१३) मालहरण चौहान
चौहानों के १३६वें रामचंद्र के वंशधर मालहरण हुए | उनसे यह मालहरण शाखा प्रसिद्ध हुई | इस वंश में भीमसिंह जी जसवंतपुरा से यवनों के सताए हुए अपने सब स्त्री पुत्रों परिवार सहित मारवाद मे जलती हुई ज्वाला से निकल भागे और मालवा, बघेलखंड में भटकते हुए अवध देश में आकर विक्रमपुर में निवास किया | थोड़े दिन खेतीबाड़ी आदि से निर्वाह किया तत्पश्चात कुछ कालोपरांत अन्य राजपूटों की तरह अलग अलग व्यवसाय करने लगे |
 इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पत्राचिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वशिष्ठ है |
 
 १४) हतषावत चौहान
      यह चौहान वंश की एक शाखा है जिसका उपनाम हत्थ भी है जिस यवनों के अत्याचार से संभर  नगर का विध्वंश हुआ | धन लूटकर आग लगा दी गयी थी, उस समय नरपति नाम के एक एक चौहान ने अपने परिवार के साथ दक्षिण पूर्व की ओर प्रस्थान किया | वहाँ एक वृहत  समुदाय राजपूतों का मालवा की . . मिला |  इसी समुदाय में सम्मिलित होकर कुछ समय तक विक्रमपुर तत्पश्चात विक्रमपुर छोड़कर अन्यत्र बसे |
     इनका वेद सामवेद, शाखा कौमुथी, गृहसूत्र- गोभिल, जनेऊ- पाँचप्रवर पक्षी चिह्न-मयूर, नदीचिह्न -चन्द्रभागा नदी, वृक्ष चिह्न- आम, शस्त्र चिह्न- खड़ग, कुलदेवी- आशापुरी देवी, कुलदेवता- आबू अचलेश्वर,महादेव, घराना- पांचाल तथा मध्यभारत है तथा इनका गोत्र वशिष्ठ है |

3 comments:

Unknown said...

jai hindurastra

Unknown said...

Very good

Unknown said...

Samera Chuan kisme ate ha Makrana ke

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